बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
उत्तर -
दो वस्तुओं के नियत साहचर्य को व्याप्ति कहते हैं। अनुमान व्याप्ति पर आधारित होता है। हेतु और साध्य से जो नियम सम्बन्ध है वही व्याप्ति है और यह अनुमान का तार्किक आधार है। व्याप्त करने वाली चीज साध्य है और जो व्याप्त होती है वह हेतु है। इसलिए साध्य को व्यापक और हेतु को व्याप्त कहते हैं। अग्नि व्यापक है और धूम व्याप्त है अग्नि व्याप्त है और धुआँ व्यापक नहीं है क्योंकि जहाँ धुआँ रहता है वहाँ हमेशा अलग रहती है लेकिन जहाँ आग रहती है, वहाँ धुआँ हमेशा नहीं रहता। इसलिए धुआँ व्याप्य और आग व्यापक है। व्याप्ति हेतु और साध्य का नियम और निरूपाधिक सम्बन्ध है। हेतु के साथ साध्य को हमेशा रहना चाहिए और उनके सम्बन्ध को किसी उपाधि के द्वारा परिच्छिन्न नहीं होना चाहिए। उपाधि वह चीज है जो साध्य के साथ सदैव रहती हो, लेकिन हेतु के साथ सदैव न रहती हो। व्याप्ति को निरूपाधिक होना चाहिए। व्याप्ति हेतु का साध्य के साथ एक ही देश में हमेशा रहना है। यह व्याप्ति का भावात्मक लक्षण है। हेतु का उन देशों में कभी न रहना जिसमें साध्य नहीं रहता, व्याप्ति का अभावात्मक लक्षण है। व्याप्ति के इन दो लक्षणों से दो सामान्य वाक्य प्राप्त होते हैं (1) भावात्मक और (2) अभावात्मक। जहाँ- जहाँ धुआँ होता है वहाँ-वहाँ अग्नि होती है - यह भावात्मक सामान्य वाक्य है जहाँ जहाँ अग्नि नहीं होती वहाँ-वहाँ धुआँ भी नहीं होता यह अभावात्मक सामान्य वाक्य है।
प्रश्न उत्पन्न होता है कि व्याप्ति का ज्ञान कैसे होता है? न्याय के अनुसार दो वस्तुओं के अन्वय के अबाधित अनुभव से उनकी व्याप्ति का ज्ञान होता है। न्याय के अनुसार व्याप्ति की स्थापना छः विधियों द्वारा की जाती है-
(1) अन्वय,
(2) व्यतिरेक,
(3) व्यभिचाराग्रह,
(4) उपाधिनिरास,
(5) तर्क
(6) सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष।
एक के रहने पर दूसरे का आवश्यक रूप से रहना अन्वय कहा जाता है। धूम के रहने पर अग्नि का रहना। किसी एक वस्तु के न रहने पर दूसरी वस्तु का न होना 'व्यतिरेक' कहा जाता है, जैसे अग्नि के न रहने पर धूम का न रहना। दोनों में व्यभिचार भी नहीं होना चाहिए। एक अनुपस्थिति में दूसरे की उपस्थिति व्यभिचार कहा जाता है। दोनों पदों में जो व्याप्ति संबंध है उसके लिए कोई शर्त या उपाधि नहीं होनी चाहिए। धूम तब होता है जब जलावन में आर्द्रता होती है। इसीलिए धूप होने पर अग्नि होती है किन्तु अग्नि होने पर धूम का होना निश्चित नहीं रहता। अतः व्याप्ति के उपाधि निरास' होना भी आवश्यक है। संशय की स्थिति में व्याप्ति दिखाने के लिए 'तर्क' का सहारा लिया जाता है। न्याय दर्शन में तर्क प्रस्तुत किया गया है कि सभी धूमवान स्थान अनिवान हैं, यह तभी गलत हो सकता है जब कुछ ऐसी भी धूमयुक्त स्थान देखे जा सकें जो अग्नियुक्त न हो अन्यथा धूम के साथ अग्नि का होना आवश्यक है। व्याप्ति सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष के आधार पर भी स्थापित होती है। जैसे सभी मनुष्य मरणशील हैं यह व्याप्ति कुछ मनुष्यों को देखकर ही स्थापित होती है क्योंकि मनुष्य का सामान्य लक्षण सभी मनुष्यों में होता है। मृत्यु मनुष्य का लक्षण है। अतः यदि कोई मनुष्य है तो वह मरणशील होगा।
हेतु जब धर्म या विशेष के रूप में प्रतीत होती है या निश्चित व्याप्ति के साथ हेतु का पक्ष में उपस्थित रहना ही 'पक्ष धर्मता' है। इसलिए कहा जाता है - हेतुमान् पक्षः धूमवान पर्वतः पक्ष धर्मता के ज्ञान को परामर्श कहते हैं जिसे अनुमान समझा जाता है इसमें हेतु तीन बार दिखलाई देता है (1) धूम रसोईघर में, (2) पर्वत पर और (3) अग्नि की व्याप्ति के साथ विशिष्ट धूम के रूप में दिखलायी पड़ती है, तभी अनुमान कार्य सम्पन्न होता है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
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- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
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